शीर्षक = एक गरीब संत और पारस पथरी
किसी गाँव मे एक संत रहता था वह भगवान की बहुत भक्ति करता था वह भगवान के भजन ध्यान मे ही मग्न रहता था उसके पास रहने के लिए एक छोटी सी टूटी -मूटी झोपडी थी उसी मे वह बड़े ही प्रसन्नत्ता के साथ अपना जीवन यापन करता था उसे कभी भी कोई बस्तु की कमी महशूस नहीं होती थी जितना भी उसे भगवान ने दिया था वह उसी बहुत संतुष्ट था वैसे भी उसे नाशवान सांसारिक वस्तुओ से कोई मोह नहीं था वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि एक दिन तो मुझे ये नाशवान शरीर को भी छोड़कर जाना पड़ेगा
एक दिन क़्या हुआ उस संत के पास अचनाक से एक सिद्ध संत भीख माँगने आया, जब उसने कुछ उस गरीब संत से माँगना चाहा तो वह सिद्ध संत सोचने लगा मै इस संत से क़्या मांगू ये मुझे क़्या दे पाएगा और उसने उस गरीब संत से माँगना उचित नहीं समझा for more Purchase this Book